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Channel: Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है

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पहनने वाला ही जानता है जूता कहाँ काटता है जिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है पराये दिल का दर्द अक्सर काठ का लगता है पर अपने दिल का दर्द पहाड़ सा लगता है अंगारों को झेलना चिलम खूब जानती है समझ तब आती है जब सर पर पड़ती है पराई दावत पर सबकी भूख बढ़ जाती है अक्सर पड़ोसी मुर्गी ज्यादा अण्डे देती है अपने कन्धों का बोझ सबको भारी लगता है सीधा  आदमी  पराए  बोझ  से दबा रहता है पराई चिन्ता में अपनी

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