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गाँधी-शास्त्री जयंती पर दो कविताएँ

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                                          युगावतार गाँधी चल पड़े जिधर दो डग, मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि, पड़ गये कोटि दृग उसी ओर; जिसके सिर पर निज धरा हाथ, उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ जिस पर निज मस्तक झुका दिया, झुक गये उसी पर कोटि माथ। हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु! हे कोटिरूप, हे कोटिनाम! तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि! हे कोटि मूर्ति,

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