जैसे ही मार्च का महीना शुरू होता है तो होली के रंग में मन डूबने-उतरने लगता है। होली में सबसे ज्यादा याद आती है गांव की होली, जब हुरियारों की टोलियां गाते हुए घर के आंगन में आकर होली के गीतों की एक से बढ़कर प्रस्तुतियां देते तो मन उन गीतों की सुमधुर ताल में डूबने उतरने लगता। कुछ गीत तो आज भी होली आते ही होंठों पर बरबस ही बार-बार गुनगुनाने बैठ जाते हैं, जैसे- "खोलो किवाड़ चलो मठ भीतर""जल कैसे भरूं जमुना गहरी""हर हर पीपल पात जय देवी आदि भवानी""चम्पा चमेली के नौ दस फूला" ,"मत मारो मोहनलाला पिचकारी""हम होली वाले देवें आशीष"आदि ....अब भले ही शहर में गांव जैसी होली हमें देखने को नहीं मिलती है, लेकिन हम शहर बसे हुए उत्तराखंडी वासियोँ ने अपनी परम्परा को जीवित रखने का मार्ग नहीं बदला है, तभी तो होली मिलन के बहाने गीत-संगीत और उन होली गीतों को आपस में मिलकर गा-बजाकर ख़ुशी मनाना नहीं भूलते हैं। आइये आप भी हमारे साथ हमारी उत्तराखंडी होली की शहरी रंग में डूबकर होली के रंगों का आनंद लीजिए और कमेंट बॉक्स मेँ आप इस बारे में क्या सोचते हैं, जरूर लिखिए ...
सभी ब्लॉगर साथियों और पाठकों को होली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!