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अबकी बार राखी में जरुर घर आना । रक्षाबंधन।

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राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
न चाहे धन-दौलत, न तन का गहना
बैठ पास बस दो बोल मीठे बतियाना
मत गढ़ना फिर से कोई नया बहाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना

गाँव के खेत-खलियान तुम्हें हैं बुलाते
कभी खेले-कूदे अब क्यों हो भूले जाते
अपनी बारहखड़ी का स्कूल देखते जाना
बचपन के दिन की यादें साथ ले आना
भूले-बिसरे साथियों की सुध लेते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना

गाँव-देश छोड़ अब तू परदेश बसा है
बिन तेरे घर अपना सूना-सूना पड़ा है
बूढ़ी दादी और माँ का  है एक सपना
नज़र भरके नाती-पोतों को है देखना
लाना संग हसरत उनकी पूरी करना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना

खेती-पाती में अब मन कम लगता
गाँव में रह शहर का सपना दिखता
सूने घर, बंजर खेती आसूं बहा रहे
कब सुध लोगे देख बागवाँ बुला रहे
आकर अपनी आखों से  देख जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना

रह-रह कर आती गुजरे वर्षों की बातें
जब मीलों चल बातें करते न अघाते
वो सघन वन की पगडंडी सँकरी
सिर लादे घास-लकड़ी की भारी गठरी
आकर बिसरी यादें ताज़ी कर जाना 
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना


गाँव के बड़े-बुजुर्ग याद करते रहते हैं
अपने-पराये जब-तब पूछते रहते हैं
क्यों नाते रिश्तों को तुम भूल गए हो!
जाकर सबसे दूर अनजान बने हुए हो
आकर सबकी खबर सार लेते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना

                   ......कविता रावत






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